विचारों को दूषित करने वाले मनोरंजन से दूर रहें :- विभा नौड़ियाल।
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देहरादून। एक विज्ञापन ने बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया, जिसमें फिल्म अभिनेत्री आलिया भट्ट कह रही हैं कि हनीमून में कपड़े कौन पहनता है??? (यह एक उदाहरण मात्र है)
अगर मैं हिंदुस्तानी आम घरों की बात करूं तो वहां पर अगर एक 9 साल का बच्चा अपने माता-पिता से इस विज्ञापन में प्रयुक्त हुए शब्दों का अर्थ पूछे तो माता- पिता क्या जवाब देंगे ?? क्या वे माता -पिता अपने बच्चे को डांट कर भगा देंगे या शर्म से अगल-बगल में झांकने लगगे ? लेकिन ऐसा करने से बच्चे की जो जिज्ञासा थी वह तो शांत नहीं होगी। अतः इतना अवश्य है कि बच्चेे कि जिज्ञासा उसे गूगल गुरु की याद दिलाएगी और जैसे ही वह गूगल में इस तरह के शब्दों को ढूंढने का प्रयास करेगा तो उसके पास कामशास्त्र की पूरी वीडियोज और फोटोज उपस्थित हो जाएंगी। तो फिर क्या उम्मीद करें कि उसके बाद आपका बच्चा जीवन में कुछ और करने लायक बचेगा ????
आश्चर्यजनक रूप से तथाकथित विद्वान हर विषय पर चर्चा करना चाहते हैं। अपनी विद्वता का प्रदर्शन करना चाहते हैं। साथ ही बड़ी-बड़ी चर्चाओं में शामिल होते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि मुनाफा खोर टीवी, सोशल मीडिया ओटीटी, थर्ड क्लास फिल्में आपके घर में ऐसे सेंधमारी होती है कि जिन्होंने संस्कारों की दुहाई देते हुए परिवारों को भी नहीं बख्शा है। क्या आप इसको एक प्रकार का सामाजिक आतंकवाद नहीं मानते हैं????
अतः कब हम लोग हिंदू-मुस्लिम की अवधारण से बाहर निकलकर बच्चों को मानवतावादी दृष्टिकोण से सिंचित कर पाएंगे?? कब समाज को खोखला कर देने वाले विचार और इस प्रकार के मनोरंजन से हम अपने समाज को बचा पाएंगे??
हर दौर की अपनी लड़ाइयां होती है वर्तमान दौर की लड़ाई अपने घर में अपनों से ही होती हुई प्रतीत होती है । जाहिर है कि हर लड़ाई में नुकसान भी होंगे और फायदे भी, पर समाज में फैल रहे ऐसे विचार से फायदे का कोई इतिहास आजतक मैंने नहीं पढ़ा, लेकिन हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहना भी हमें विजय नहीं दिला सकता है। अतः स्ट्रैटेजिक तैयारी की आवश्यकता होगी, जिसमें माता- पिता अपने बच्चों के साथ एक खास प्रकार के बिंदुओं पर चर्चा कर खुल कर बात करें।
शादी के लिए जन्मपत्री मिलाने के बजाय मेडिकल फिटनेस और चरित्र प्रमाण पत्र की डिमांड करें, क्योंकि एक अंधियारा हमारे जीवन को इस प्रकार घेरे हुए हैं, जहां पर हमें नहीं पता कि दुश्मन किस रूप में हमारे आसपास घूम रहा है। हमारा सारा ध्यान धन-दौलत भौतिक सुख -सुविधाओं पर केंद्रित है, लेकिन हमारे जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले हमारे अपने लोग, हमारे आस- पास का पड़ोस व मानव जीवन अपने आप में एक खतरा बना हुआ है। माता -पिता अगर इस लेख को पढ़ रहे हो तो मेरी आपसे विनती है कि वे अपने बच्चों से दोस्ती करें, जहां तक हो सके इस प्रकार के मनोरंजन को जो आपके मन मस्तिष्क को दूषित करते हैं उनसे दूर रहे व अपने बच्चों को भी दूर रखें ।खेती-बाड़ी ना सही घर के कुछ गमलों में ही उन्हें व्यस्त रखें ।जितना हो सके अपने मोबाइल को अपने से दूर रखें बच्चों के साथ समय व्यतीत करें उनके साथ दोस्ती करें अन्यथा, अगर उन्होंने बाहर दोस्ती करनी उससे प्रारंभ कर दी तो विनाश की इबारत लिखने वाले तो हमारे आसपास ही मौजूद है ।
सोचिए आज से 50 साल पहले जब माता- पिता का ध्येय ही बच्चों में संस्कार देना होता था, तब पैदा हुए व्यक्ति समाज में क्या गुल खिला रहे हैं तो आने वाले बच्चे कैसी इबारत लिखेंगे यह एक विचारणीय प्रश्न है !यकीन मानिए एक समझदार पीढ़ी अगर हमने तैयार कर दी तो आगे सब अच्छा ही होगा, समुद्र में एक एक बूंद का अपना महत्व होता है आप अपना योगदान दीजिए ।