किसानों को सचेत के लिए घर- गांवों में धनपुतली का हुआ प्रवेश..
गोपेश्वर। घर-गांवों में धनपुतली का आगमन का समय आ गया है, इसका मतलब है कि ये धनपुतली किसान को सचेत अथवा जगाने आती है कि अब धान लगाने का समय आ गया है। इन धनपुतली को पहाड़ी भाषा में ‘धनपातवी’ कहते हैं।
पहाड़ में मौसम की चेतावनी याद कराता है कि जब चीटी का अन्तिम समय आता है तो उनके पँख निकल आते हैं। फलस्वरूप वह उड़ती हैं, खूब उड़ती हैं और अन्त में मर जाती है।
धान की फसल ऊपर निकल आने पर इनके पँख निकलने शुरु होते थे। तब गाँव-घरों के बच्चे इन्हें पकड़ते और छोड़ देते और गाते हैं:-
“धनपुतली दान दे,
सुप्पा भरी धान दे,
तेरी बरियात पछिल देखुल,
बरखा एगे जान दे
ऐ धनपुतली फिर मुझे गाँव पहुँचा दे।
धन पुतली धान दे
कौआ काटी पान दे”
खेतों में इन धनपुतली का पीछा करना हर पहाड़ी के बचपन की एक सुनहरी याद है। साथ ही इस बालगीत को चिल्ला चिल्लाकर गाना की भी।
माना जाता है कि चींटी जीवन भर मेहनत करती है और उसे भगवान अपने पास बुलाने के लिये धनपुतली बनाता है और यह उड़कर उस तक पहुंचती है, इसलिये कृषि प्रधान पहाड़ इनसे धान की अच्छी फसल होने की कामना करते हैं।