जोशीमठ। पैनखंडा में स्थित बदरीनाथ धाम के प्रवेश द्वार पाखी-गरुड़गंगा में 22 दिसम्बर से आयोजित पांडव लीला में आखिरी दिन गैंडा वध का मंचन किया गया, जिसे देखने के लिए क्षेत्र के श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ा था।
सदियों से पहाड़ों में पांडवों के प्रति स्नेह व प्रेम रहा है। यही कारण है कि यहां पर प्रत्येक वर्ष ग्रामीण क्षेत्रों में पांडवों की याद में पांडव लीला का आयोजन किया जाता है। पाखी गरुड़गंगा में पांडव नृत्य के आखिरी दिन गेंडा वध का आयोजन किया गया, जिसको देखने के लिए पूरे पैनखंडा के अलावा बंड पट्टी व दशोली के लोग उमड़ पड़े।
मान्यता है कि पांडवों को अपने पित्रों के तर्पण के लिए गेंडे की खगोती की जरूरत होती है तो धनुर्धर अर्जुन हाथी पर बैठकर श्रीकृष्ण भगवान के मार्गदर्शन में नागलोक में जाकर गेंडे का वध करते हैं। गैंडा वध के बाद पांडवों के पश्वा गरुड़गंगा नदी के तट पर पहुंचे। यहां पर अस्त्र शस्त्रों को स्नान कराने के बाद पितरों का तर्पण किया गया।
कमल किशोर डिमरी के अनुसार-गाँव में वर्षों से एक परम्परा के तहत प्रत्येक तीन साल के अंतराल में पांडव लीला का मंचन होता आया है, लेकिन पिछले कुछ समय से कोरोना के चलते पांडव लीला का मंचन नहीं हो पाया। अतः इस वर्ष गाँव में एक सौहार्द पूर्ण तरीका से पांडव लीला का मंचन किया गया, जिसमें गाँव के ध्याणियों सहित अलग-अलग क्षेत्रों के लोग पांडव लीला देखने आये।
पाखी गरुडगंगा पांडव नृत्य समिति के अध्यक्ष सुनील बिष्ट ने कहा कि इस दौरान भोज का आयोजन भी किया गया। बताया कि जलयात्रा में ध्याणियां ने भी भारी संख्या में भागीदारी ली।